आयुर्वेद विज्ञान में भारत दुनिया के बाकी देशों से सर्वोपरि है क्युकी भारतीय संस्कृति में महान आयुर्वेद के वैज्ञानिक गुजरे है.आज पूरी दुनिया में आयुर्वेदिक स्टडी के लिए को दवाई या कुछ और चाहिए होता है तो यह भारतीय उपमहाद्वीप में उपलब्ध है.आज पूरी दुनिया आयुर्वेद का लोहा मान चुकी है.आयुर्वेद जगत में बेहद खुसखबर आ रही है कि आयुर्वेदिक दवाएं के रूप में काम आने वाली भांग को सालो के प्रत्यन से संयुक्त राष्ट्र संघ ने इस्तमाल की मंजूरी दे दी है.जिसकी सिफारिश विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कि थी.
भांग का उपयोग दवाई के रूप में हजारी सालो से किया जा रहा था लेकिन स्वास्थ्य संगठन इस नशीली दवाईयो की सूची में डाल रखा था एवं इसके उपयोग पर रोक थी.अब वो रोक हट गई है और दवाई के रूप में इसका उपयोग कर सकते है. सयुक्त राष्ट्र संघ की बैठक में इसके लिए वोटिंग का विकल्प किया गया.जिसमे 27 देशों ने भारत की मांग को समर्थन करते हुए बोट किया वहीं दूसरी ओर 25 देशों ने इसका विरोध किया.सयुक्त राष्ट्र संघ ने बताया कि आने वाले समय में यह मेडिकल क्षेत्र में क्रांति साबित होगी
क्युकी जो देश इस पर शोध करने में प्रयत्नशील है उनके लिए अब ओर फायदा होने वाला है.आपको जानकारी दे दे की भांग का उपयोग सिर्फ मेडिकल क्षेत्र तक ही सीमित है अन्यथा उपयोग पर अभी भी प्रतिबंध है.अमेरिका,ब्रिटेन,पाकिस्तान आदि ने इस बिल का समर्थन कर अपनी भूमिका दर्ज की.विश्व में अपने देश ऐसे है जिन्होंने भांग के उपयोग को अपने देशों में अनुमति प्रधान कर रखी है.वहा उनका उपयोग शौकिया तौर पर किया जाता है.भांग के पोधे की मांग सर्वाधिक यूरोपीय देशों में दिख रही है.अतीत के पन्ने में झांक कर देखो तो चीन में 15 वी सताब्दी से भांग का उपयोग किया जा था है दवाई के रूप.अगर भारत की बात करे तो भांग तो भारतीय संस्कृति का अभिन्न हिस्सा रही है.
भारतीय त्यौहार होली पर भांग डिमांड बढ़ जाती है वहीं शादी ब्याह पर तो मनुहार के रूप में भांग ही उपयोग की जाती है.आंकड़ों की बात करे तो दुनिया की 50 से ज्यादा विकसित राष्ट्र ने भांग को अनुमति दे रखी है उपयोग की.अब उन देशों के अत्यधिक लाभ होने वाला है जो इसकी खेती करते है क्युकी अब उसका विश्व पटल में मांग बढ़ेगी जिससे इंपोर्ट करना आसान होगा.
