स्वामी विवेकानन्द को भारतीय सनातन धर्म का प्रतीक माना जाता है.उन्होंने अपने जीवन में हिन्दू धर्म की संस्कृति और उसके नियमों को वाचन करने में लगा दिया.उनके द्वारा 1893 में अमेरिका के शिकागो में आयोजित धर्म सांसद चर्चा में दिए गए भाषण से सबको अपना कायल बना दिया था.उस दिन उन्होंने सनातन धर्म की संस्कृति को इतना अच्छा व्याख्यान किया की वहा उपस्थित लोग उनके अनुयायियों ने शामिल हो गए.इस धर्म संसद के भाषण से उनकी गिनती दुनिया के महान गुरुओं में होने लग गई.स्वामी विवेकानन्द का जन्म 12 जनवरी 1913 को बंगाल में हुआ थे.स्वामी विवेकानन्द के बचपन का नाम नरेंद्र दत था.स्वामी विवेकानन्द ने अपनी वाक् पटूता से सबको अपना कायल कर दिया था.उनकी शिक्षा दीक्षा कलकता यूनिवर्सिटी से हुई थी.स्वामी विवेकानन्द को योगा ओर वेदों का फिलोसोफार माना जाता है.उन्होने वेस्टर्न कल्चर में जाकर हिन्दू धर्म के उपदेशों को प्रचार किया.पूरे विश्व में स्वामी विवेकानन्द को गुरु माना जाता है क्युकी उन्होंने विद्यार्थी जीवन पर कई बार चर्चा की है.
स्वामी विवेकानन्द ने राम कृष्ण मिशन की स्थापना की थी.जिसका उद्देश्य समाज में सनाथन धर्म को आगे लेकर जाना है.स्वामी विवेकानन्द के आध्यात्मिक गुरु रामकृष्ण थे जिन्होने स्वामी विवेकानन्द को वेदों और पुराणों का ज्ञान दिया उनके बातो से प्रेरित होकर स्वामी जी ने सब कुछ छोड़ कर अपना जीवन हिन्दू धर्म के प्रसार और प्रचार में लगा दिया.स्वामी विवेकानन्द के कहानियां ओर उनके तर्क बाते हैं अक्सर पढ़ते रहते या सुनते रहते है.एक ऐसा ही किस्सा आपको बताने जा रहे है जिसमे किसी मुस्लिम द्वारा मूर्ति के सवाल पर क्या जवाब दिया उन्होंने.एक बार स्वामी विवेकानन्द के खास मित्र नवाब के यहां चर्चा करने और भर्मण करने पहुंचे.दोनो अच्छे मित्र थे.नवाब ने स्वामी विवेकानन्द का सत्कार अच्छे से किया वही उनके लिए खाने पीने की अलग व्यवस्था कि थी.जब खानपान हो गया था.
स्वामी विवेकानन्द ओर उनके मित्र नवाब आपस ने चर्चा करने लग गए.चर्चाओं में नवाब ने स्वामी विवेकानन्द को कहा अगर भगवान और अल्लाह एक है तो आप मूर्ति पूजा क्यों करते हो.स्वामी विवेकानन्द ने आराम से तस्सली से कहा कि आपके पीछे जो फोटो लगी है किसकी है.नवाब ने फरमाया कि यहां क्यों फोटो लगा रखी है उसे कचड़े में फेक दो.नवाब ने कहा इस से मुझे मेरे पिता जी याद आती है और ऐसा लगता मेरे सामने हो.स्वामी विवेकानन्द ने इसे बड़े ध्यान से सुना और कहा कि हमें मूर्ति मे भी भगवान की मूरत नजर आती है.यह जवाब सुनकर नवाब मुस्करा कर कहने लगे आपकी वाक् पटुता का कोई जवाब नहीं है. स्वामी विवेकानंद की मृत्यु 4 जुलाई 1902 को मात्र 39 साल की उमर मे हो गया था ।
