शहीद कैप्टन विक्रम बत्रा की बायोपिक रिलीज हो चुकी है और दर्शकों का भरपूर प्यार मिल रहा है.फिल्म देख चुके ज्यादातर दर्शकों का यही कहना है कि वे अपने इमोशंस कंट्रोल नहीं कर पाए.अब विक्रम बत्रा के पेरेंट्स ने बताया है कि फिल्म में सिद्धार्थ के डेथ सीन पर उनका क्या रिऐक्शन था.कारगिल वॉर में कैप्टन बत्रा शहीद हुए थे और LOC: Kargil में पहले अभिषेक बच्चन उनका रोल प्ले कर चुके हैं.
एक इंटरव्यू में कैप्टन बत्रा के पिता जीएल बत्रा ने बताया कि 1997 में आई फिल्म बॉर्डर विक्रम बत्रा ने 8 बार देखी.वह देशभक्त इंसान थे.उन्होंने द क्विंट को बताया था, विक्रम ने बॉर्डर 8 बार देखी थी जिसका उन पर काफी असर हुआ था.उन्होंने सैनिक की जिंदगी और सेना की जॉब काफी पसंद थी, उनके अंदर गहरी देशभक्ति थी.
जीएल बत्रा ने ‘शेरशाह’ में कैप्टन बत्रा के शहादत वाले सीन पर भी बात की.उन्होंने बताया, एक पाकिस्तानी छिपा हुआ पाकिस्तानी सैनिक उन पर निशाना साधता है और उनके सीने पर 3-4 गोली लग जाती हैं.तभी वह गिर जाते हैं और उनके मुंह से खून गिरने लगता है और वह दुर्गा माता की जय का नारा लगाते हैं.इसके बाद वह गिरकर शहीद हो जाते हैं.हमारे लिए यह बेहद इमोशनल करने वाला मोमेंट था.
वहीं कैप्टन बत्रा की मां कमल कांता बत्रा बताती हैं,जब फिल्म में अचानक उसको गोली लगी तो मैं बहुत इमोशनल हो गई थी. इससे पहले उनके जुड़वा भाई विशाल बत्रा ने Etimes को बताया था फिल्म देखने के बाद वह कुछ देर तक शांत रहे जिसमें उन्होंने उस भावनात्मक तूफान को शांत किया जिसे इतने साल से अपने अंदर दबाए थे.
कैप्टन विक्रम बत्रा का जन्म 9 सितंबर 1974 को हिमाचल प्रदेश के पालमपुर में हुआ था.
उन्होंने अपने सैन्य जीवन की शुरुआत 6 दिसंबर 1997 को भारतीय सेना की 13 जम्मू-कश्मीर राइफल्स से की थी. घटना उन दिनों की है जब भारतीय सेना और आतंकियों के भेष में आए पाकिस्तानी सेना के जवानों के बीच कारगिल का युद्ध जारी था. कमांडो ट्रेनिंग खत्म होते ही लेफ्टिनेंट विक्रम बत्रा की तैनाती कारगिल युद्ध क्षेत्र में कर दी गई थी. 1 जून, 1999 को अपनी यूनिट के साथ लेफ्टिनेंट विक्रम बत्रा ने दुश्मन सेना के खिलाफ मोर्चा संभाल लिया था.
दुश्मनों का अंत करके हम्प और रॉक नाब चोटियों पर किया कब्जा
प्रारंभिक तैनाती के साथ लेफ्टिनेंट विक्रम बत्रा ने हम्प व रॉक नाब की चोटियों पर कब्जा जमाकर दुश्मन सेना को मार गिराया था. लेफ्टिनेंट विक्रम बत्रा की इस सफलता के ईनाम के तौर पर सेना मुख्यालय ने उनकी पदोन्नति करके कैप्टन बना दिया था. पदोन्नति के बाद कैप्टन विक्रम बत्रा को श्रीनगर-लेह मार्ग के बेहद करीब स्थिति 5140 प्वाइंट को दुश्मन सेना से मुक्त करवाकर भारतीय ध्वज फहराने की जिम्मेदारी दी गई. कैप्टन विक्रम बत्रा ने अपने अद्भुत युद्ध कौशल और बहादुरी का परिचय देते हुए 20 जून 1999 की सुबह करीब 3:30 बजे इस प्वाइंट पर कब्जा जमा लिया था.
आतंकियों के भेष में मौजूद पाकिस्तानी सेना से आमने-सामने की लड़ाई जारी थी. दोनों तरफ से लगातार गोलियों की बौछार जारी थी. इसी दौरान लेफ्टिनेंट नवीन के पैर में गोली लग चुकी थी. दुश्मन ने लेफ्टिनेंट नवीन को निशाना बनाते हुए लगातार फायरिंग शुरू कर दी थी. अपने साथी की जान बचाने के लिए कैप्टन विक्रम बत्रा दौड़ पड़े. वो लेफ्टिनेंट नवीन को खींच कर ला ही रहे थे तभी दुश्मन की एक गोली उनके सीने में आ लगी. उन्होंने ‘जय माता दी’ का उद्घोष किया और वीरगति को प्राप्त हो गए.
कैप्टन विक्रम बत्रा के अदम्य साहस और पराक्रम के लिए 15 अगस्त 1999 को उन्हें वीरता के सर्वोच्च सम्मान परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया.